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धारावाहिक मकाफात - ए - अमल episode 2


दरवाज़े  पर  दस्तक  होती है । दरवाज़े  पर  दस्तक  होती देख  ज़ोया और आरज़ू  समझ  गए  कि अब्बू होंगे और आरजू  दरवाज़ा  खोलने चली  जाती है ।


दरवाज़ा  खोलते  ही  आरजू  और जोया के अब्बू घर  के अंदर  आते  और कहते  " तुम सब  ने नमाज़  पढ़  ली या नही और ये जोया उठ  गयी  या सौ रही  है  "


"जी अब्बू हम सब  ने नमाज़  पढ़  ली और जोया तो कमरे में बैठ  कर  पढ़ रही  है  और अली सौ गया  नमाज़  पढ़  कर  और अम्मी बावर्ची  खाने  में नाश्ता बना  रही  है  हम  सब  के लिए  " आरज़ू  ने कहा

"अच्छी बात है , अगर  सब  अपने अपने कामों में लगे  है  और मेरा नवासा मावी कहा  है  दिखाई  नही दे रहा  है  " अशफाक जोया के अब्बू ने पूछा 


"अब्बू, मावी सौ रहा है अभी उसके उठने का समय नही हुआ है  ससुराल  में भी  देर से ही उठता  है  सोकर  " आरज़ू  ने कहा

" अच्छा ये बताओ  ससुराल  में तुम्हारी सास, ससुर  और नन्दे ठीक  है , उनका रावय्या तुम्हारे साथ  अच्छा है या नही, और तस्लीम (आरजू  का शोहर )कब  आ रहा  है  तुमको लेने कुछ बताया  उसने " अशफाक ने आरज़ू  से पूछा 

"अब्बू आज या  कल  में लेने आएंगे  और ससुराल  में भी  सब  अच्छा है  थोड़ी  बहुत  नोक झोक  तो हर  घर  में होती ही है  सास नन्दो की " आरज़ू  ने कहा

"चलो  अच्छी बात है , बस  छोटी  ही नोक झोक  रहे  कभी  बड़ी  ना बने  जिससे माँ बेटे के बीच  दरार  आ  जाए और बेटा तुम भी  अपनी सास ससुर  की थोड़ी  बहुत  बाते बर्दाश  किया करो  जरूरी  नही हर  बात का जवाब  दिया जाये तुम्हे घर  को जोड़े रखना  है  तभी  तुम्हारा घर भी  जुडा रहेगा  जब  तुम भी  कभी  सास बनोगी  क्यूंकि बच्चे जो सीखते  है  वही  करते  है  " अशफ़ाक़  ने आरजू  के सर पर  हाथ  फेरते  हुए  कहा


" जी अब्बू आप  की सीख  मुझे  याद है , बस  आप  दुआ किया करे  मेरे लिए कि मैं अपने ससुराल  वालो को हमेशा  खुश  रख  सकूँ और साथ  ही साथ  अपने शोहर  को भी  " आरज़ू  ने कहा

तभी  आरज़ू  और ज़ोया की अम्मी  सहर वहा  आती  और कहती  " बाप बेटी की बाते ख़त्म  हो गयी  हो तो नाश्ता कर  लीजिये आ  कर  तैयार है  7 बज  चुके  है ।ज़ोया को भी  जा कर  बुला लाओ उसे भी  नाश्ता करके  कॉलेज  जाना  होगा "


"चलये  अब्बू नाश्ता करते  है  मिलकर  मैं ज़ोया और अली को बुला कर  लाती हूँ  नाश्ते के लिए  " आरज़ू  ने कहा और ज़ोया के कमरे  में चली  गयी।


"ज़ोया और अली बाहर  आ  जाओ नाश्ता करलो  " आरज़ू  कहती  हुयी कमरे  की तरफ  बड़ी 


ज़ोया जो कमरे  में बैठी  मोबाइल पर  किसी से चुपके  चुपके  बाते कर  रही  थी  आरज़ू  की आवाज़  सुन झट  से फ़ोन  काट देती और किताब हाथ  में ले लेती.

"ओह हो  लगता  है  आज  सूरज  उलटी दिशा  से निकला है  जो ये मैडम मोबाइल छोड़  कर  किताब पकडे  हुयी है  " आरज़ू  ने कहा

" क्या आपी , सुबह  तो तुमने इतना लेक्चर  दिया था  पढ़ाई  को लेकर  और अब जब  में पढ़ने बैठी  हुयी हूँ तो मज़ाक  बना  रही  हो " ज़ोया ने मुँह फुलाकर  कहा 

" चल  अच्छा ज्यादा गुस्सा मत  हो बाहर  अम्मी ने नाश्ता बनाया  है  वो करले  आ  कर  सब  के साथ  कल  को मैं भी  चली  जाउंगी " आरज़ू  ने कहा

" इतनी जल्दी, अभी  कुछ  दिन तो और रुको अभी  तो सिर्फ एक हफ्ता हुआ है  तुम्हे आये  हुए  और तुम जाने की बात कर  रही  हो " ज़ोया ने कहा

" इस बार तो बहुत रुक गयी  वरना  तुझे  तो पता  ही है मेरे ससुराल  का और सास नन्दो का मुझे  आने  नही देती है  " आरज़ू  ने कहा

" आपी  तुमने बेवजह  अपने ससुराल  वालो को अपने सिर चढ़ा  रखा  है , तस्लीम  भाई से कहो  अब अलग  हो जाए उनके दूसरे भाई  भी  तो अपनी फैमिली को लेकर  अलग  हो गए  है , बेवजह  तुम उन लोगो के साथ  मधुमखी के छत्ता में रहती  हो, दूल्हा भाई  का अच्छा काम है  किराए के घर  पर  भी  रह  सकती  हो तुम तो " ज़ोया ने कहा

" नही मेरी प्यारी बहन  ऐसा थोड़ी  होता है , तुम्हारे दूल्हा भाई  उस घर  के बड़े  बेटे है  मेरे साथ  साथ  उनकी उस घर  के लिए  भी  कुछ  ज़िम्मेदारी है , उनकी दो कुवारी बहने  है  जिनकी अभी  शादी  करनी  है  और मेरी सास भी  बीमार रहती  है  अब अगर  ऐसी हालात में हम  उन्हें छोड़  कर  कही  और चले जाएंगे तो फिर  वो बेचारे  तो बेसहारा हो जाएंगे। अगर  आज  हम  लोग उन्हें छोड़  कर  किराय के घर  पर  चले  जाएंगे  तो कल  को हमारे  बच्चे  भी हमें छोड़ कर चले  जाएंगे यही  तो मकाफाते  -ए - अमल  होता है  जो बोगे वो काटोगे। " आरज़ू  ने कहा

" तुम तो गाय हो अल्लाह मिया की जिसने जो कहा मान लिया, " ज़ोया ने कहा

":हम  जैसे भी  है  सही  है, हमें हमारे  अब्बू ने खानदान  को जोड़े रखने  की तरबियत  दी है  ना की घरों  को तोड़कर  अकेले रहने  की और तुझे  भी यही  करना  होगा शादी  के बाद " आरज़ू  ने कहा

" देखेंगे  कौन क्या करता  है , मेरे तो बस की नही है  कि मैं सास, ससुर  और नन्दो की खिदमत  करू " ज़ोया ने कहा


"आरज़ू  और ज़ोया तुम दोनों अंदर  सौ गयी  क्या?" बाहर  से उनकी अम्मी ने आवाज़  देकर  पूछा 

"तेरी बेवजह  की बातो के चककर में, मैं भूल  बैठी  कि बाहर  चाय  और पराठे  ठन्डे  हो रहे  है , चल  जल्दी बाहर  चल  " आरज़ू  ने कहा


वो दोनों बाहर  आ  जाती है ।

जोया सलाम  करती  और नाश्ता करने  बैठ  जाती।

"ज़ोया बेटी पढ़ाई  केसी जा रही  है  " अशफ़ाक़  ने पूछा 

"जी अब्बू अच्छी जा रही  है  "ज़ोया ने आरज़ू की तरफ  देख  कर  कहा।

आरज़ू  उसे साफ  झूठ  बोलते हुए  देख  उसकी तरफ  देख  हसने  लगी  और दिल ही दिल में बोली " केसा साफ झूठ  बोल रही  है  अब्बू से फ़ैल  हो गयी  और कह  रही  है पढ़ाई  अच्छी जा रही  है  "

सब  लोग नाश्ता करते  है , तभी  आरज़ू  का बेटा जो की सौ रहा  था  रोते हुए  उठता  है , जिसकी रोने की आवाज़  सुन आरज़ू  कमरे  की तरफ  दौड़ती और उसके पास  जाती  और कहती  " ओ मेरा राजा बेटा उठ  गया , इतनी जल्दी उठ गया  चलो  अब नहा  धोकर  तैयार हो जाओ फिर  नानू अच्छा सा नाश्ता बना  देंगी ओमलेट खायेगा  मेरा बच्चा  "


मावी ने हाँ में गर्दन  हिलाई  और बोला "पापा कब  आएंगे  मुझे  उनकी याद आ  रही है  "

" बेटा आज  या फिर  कल  आएंगे  " आरज़ू  ने कहा और उसे नहाने ले गयी ।


वही  दूसरी  तरफ  तबरेज  भी  माँ के हाथ  का बना  नाश्ता कर  रहा  होता है । उसका छोटा  भाई  और उसकी बीवी भी  सौ कर  उठ  गए  थे । और वो लोग भी  साथ  में नाश्ता कर  रहे  थे ।

" अम्मी आलू  के पराठे  बहुत अच्छे लग  रहे  है  क्या एक और मिलेगा " आरिफ  ने कहा

"हाँ, बेटा क्यू नही "आमना  ने कहा

" जाओ फरिया  ( आरिफ  की बीवी ) अम्मी के पास  से कुछ  पराठे  ले आओ और देखों उन्हें कुछ  मदद  तो नही चाहिए  उनके घुटनो  में कही  दर्द हो रहा  हो " आरिफ  ने अपनी बीवी से कहा


" मेने कहा  तो था  अम्मी से की आप  बैठो  मैं पराठे  बना  लेती हूँ, लेकिन उन्होंने मना  कर  दिया और कहा तुम तीनो  को मेरे हाथ  के ही पराठे  अच्छे लगते  है  " फरिया  ने कहा

" ये बात तो सही  कही  अम्मी ने, क्यू ना भाई?  "आरिफ  ने तबरेज  की तरफ  इशारा  करते  हुए  कहा

" हाँ, सही  कहा , बचपन  में तुम कैसे अपनी बहनो  के भी  पराठे  चुरा  कर  खा लिया करते  थे  " तबरेज  ने कहा

" सही  कहा भाई  बचपन  के भी  क्या दिन थे  हम  सब  खेल कूद  करते  रहते  थे  कभी  दाराखतो पर  चढ़ना  तो कभी  मार कुटाई  करना, वैसे ये छोटा  (जकी उसे सब  छोटा  बुलाते है  घर  में ) नज़र  नही आ  रहा  है , कहाँ है  आज  कल  " आरिफ  ने पूछा 


" इम्तिहान आ  रहे  है  इस लिए  थोड़ा  पढ़ाई  में मसरूफ  है  रात भी  किसी दोस्त के घर  से पढ़  कर  आया  था  काफी देर से " रसोई  से आमना  ने कहाँ


" अच्छा आरिफ  मुस्तकबिल ( भविष्य ) का क्या सोचा  है , क्या काम करना  चाहोगे  कहो  तो एक किराना खुलवा  दू  तुमको बड़ा  सा घर  के नज़दीक  ही घर  पर  भी  आते  जाते रहोगे  अम्मी और भाभी  को भी  कुछ बाहर  से मंगाने में परेशानी  नही होगी " तबरेज  ने आरिफ  से पूछा 


" जी भाई, अच्छा विचार  है  आस  पास कोइ बड़ी  दुकान भी  नही है  लेकिन बहुत  पैसा लगेगा  दुकान करने  में और इतना पैसा मेरे पास  तो नही है  जो था  वो बच्चे  की पैदाइश  पर  खर्च  हो गया  " आरिफ  ने कहाँ

" तू  क्यू फ़िक्र करता  है , तेरा भाई  अभी  ज़िंदा है,  मैं हूँ ना  मैं कराकर  दूंगा  तुझे  दुकान और पैसे भी  मैं ही लगाऊंगा । तू  बस  ये बता की संभाल लेगा या नही या फिर  कुछ और करना  चाहे  तो वो बता  दे " तबरेज  ने आरिफ  की कमर  पर प्यार से हाथ  फेरते हुए  कहाँ।

" शुक्रिया भाई, अगर  आप  ना हो तो हम  लोग तो कुछ  भी  नही कर  सकते , जी भाई  मैं संभाल  लूँगा  आप  बिलकुल फ़िक्र मत  करो  " आरिफ  ने गले  लगा  कर  कहाँ अपने बड़े  भाई  को


आमना ये सब  देख  कर  खुश  होती और कहती  " खुदा  मेरे बेटों को हमेशा  ऐसे ही रखना  प्यार मोहब्बत  से "


वो लोग नाश्ता कर  ही रहे  थे कि तभी  दरवाज़े  पर  दस्तक  होती और आरिफ  जा कर  दरवाज़ा  खोलता 

" अरे! जुनैद  ( जुनैद  तबरेज  का बचपन  का दोस्त है  ) तुम आज  इतनी सुबह  सब  ठीक  तो है , और ये हाथ में क्या है ? " आरिफ  ने पूछा


"कौन है  आरिफ ? " तबरेज  ने पूछा 

"भाई  आपका  लंगोटिया  यार  जुनैद  आया  है  " आरिफ  ने दरवाज़े से ही ज़ोर से कहाँ

" जुनैद , तो उसे अंदर  लेकर  आओ  बाहर  क्यू खड़े  हो तुम दोनों " तबरेज  ने आरिफ  से कहाँ

जुनैद  सब  को सलाम  करता  और तबरेज  को वो अपने गले  से लगाता

" क्या बात है? , आज  बड़ा  गले  लग  रहा  है  और ये हाथ में क्या है  तेरे चल  बैठ  चाय  पीते  है  " तबरेज  ने कहाँ

" बात ही कुछ  ऐसी है  कि तुझे  बताये  बिना रहा  नही जा रहा  है  " जुनैद  ने कहाँ

" क्या हुआ? " तबरेज  ने दोबारा पूछा 


"वो क्या है  ना बहन  रबिया की बात पक्की हो गयी  है  एक लड़के  के साथ  जो दुबई  रहता  है  काफी अच्छे लोग है  दहेज़  भी  नही चाहिए  उनको, बस  घरेलु  लड़की  चाहिए  " जुनैद  ने मिठाई  देते हुए  कहाँ

तबरेज  उसे गले  लगाता और कहता " बहुत  बहुत  मुबारक  हो तुझे , तूने  बताया  नही कुछ  भी  पहले  "

" हाँ भाई  बस  उम्मीद नही थी  क्यूंकि दो सगाई  पहले  ही टूट  चुकी  थी  एक दहेज़  को लेकर  और दूसरी  बहन  की उम्र को लेकर , इसलिए  अब किसी को ज्यादा बताया  नही था क्यूंकि जमाना  बहुत  बुरा है  अपने ही दगा दे जाते है कभी  कभी  अच्छे रिश्ते देख  कर  " जुनैद  ने कहाँ

" सही  बात है  भाई , लेकिन मुझे  बहुत  ख़ुशी  हो रही  है  चल  इस बात पर  चाय  पीते  है , और बता  तो शादी  का कब  तक  का इरादा है, अब सगाई  में पैसा बर्बाद मत करना सीधा शादी करके बहन को अपने घर का कर देना, " तबरेज ने कहाँ

" हाँ, भाई हमारी तो पूरी तैयारी है शादी की बस उनसे पूछना है की वो कब बारात लेकर आएंगे, वैसे लग  रहा  था की वो भी  ज्यादा देर करना  नही चाहते  है शादी  को क्यूंकि लड़के  की माँ बीमार है  तो इसलिए  शायद  अगले महीने  या फिर  उससे अगले  महीने  में वो शादी  कर  लेंगे " जुनैद  ने कहाँ

"चलो  अच्छा चाय  पीते है  8:30 हो गए  है  फिर दुकान पर  भी  जाना है  " तबरेज  ने कहाँ

उसके बाद दोनों ने चाय पी और काफी बाते करी ।



केसा होगा तबरेज  और जोया का मिलन  जानने के लिए  पढ़ते  रहिये  हर  हाफ्ते मकाफ़ात -ए -अमल  




18/ 04/२०२२

नॉन स्टॉप 

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3 Comments

Simran Bhagat

18-Apr-2022 04:07 PM

👍🏻👍🏻👍🏻

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Zakirhusain Abbas Chougule

18-Apr-2022 02:31 PM

Very nice story

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Gunjan Kamal

18-Apr-2022 01:05 PM

कहानी बहुत अच्छी जा रही है 👏👌🙏🏻

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